कहीं का भी नहीं छोड़ा
ग़ज़ल
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गए गुजरे दहर ने तो कहीं का भी नहीं छोड़ा,
हमें अहले कहर ने तो कहीं का भी नहीं छोड़ा,,
उजड़ने भी नहीं देता बसाता भी नहीं दिल मे,
मुझे अपने शहर ने तो कहीं का भी नहीं छोड़ा,,
पड़े थे हम तो सहरा मे छुपाके गम समंदर से,
मगर उसकी लहर ने तो कहीं का भी नहीं छोड़ा,,
जलाकर तू मेरे अरमा बना कर चाय लाई हैं,
तेरे मीठे जहर ने तो कहीं का भी नहीं छोड़ा,,
सुबह अच्छे भले थे हम कहाँ था मूड पीने का,
मगर पिछले पहर ने तो कहीं का नहीं छोड़ा,,
कहीं मतला कहीं मिसरा कहीं पर शेर बिखरें हैं,
जरा टूटी बहर ने तो कहीं का भी नहीं छोड़ा,,
तेरी बस्ती हैं जन्नत सी सुना था ये जमाने से,
चले आए ठहर ने तो कहीं का भी नहीं छोड़ा,,
प्रेमल नूराना
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P D Premal Noorana, mob ९७२८०७२७००
From : Ratia, Fatehabad, Haryana
Khushi jha
29-Oct-2021 02:01 PM
लाजवाब
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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
25-Oct-2021 03:15 PM
Wah wah premal noorana sir
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ऋषभ दिव्येन्द्र
25-Oct-2021 02:03 PM
बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌
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